सोमवार, 17 सितंबर 2012

कितना बहादुर समझते है

कितना बहादुर समझते है
हम खुद को और सोचते है
कि आसमान पर उड़ेंगे
नाप देंगे समुद्र को
हवाएं हमारी इजाजत से चलेंगी
पहाड़ छोड़ देगा रास्ता
हम जैसे और जहा चाहेंगे
उड़ेंगे खूब उड़ेंगे
हममे आ जाता है भाव
अहम् ब्रह्मास्मि का
पर
एक छोटा सा झटका
एक छोटी सी बीमारी
डरा देती है हमें
जब अबूझ बन जाती है
और हम अचानक
जमीन पर आ जाते है
इन्सान बन जाते है
एक दम उस समय के लिए ।

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