शनिवार, 15 जून 2013

सच में मैं रो नहीं रहा हूँ

मेरी आँखों से अक्सर 
आंसू आने लगते है
बिना किसी कारण और
दिल से निकलने लगती है
हिचकियाँ
कोई कारण नहीं होता है
सच कह रहा हूँ ।
मैं दबा डेता हूँ हिचकियाँ 
और छुपा लेता हूँ आंसू 
ताकि कोई खुद को 
उनका जिम्मेदार न समझ ले
अभी भी गीला हो गया है
पता नहीं क्या क्या
पर सच में मैं रो नहीं रहा हूँ 
बल्कि शायद मेरी आँख में 
कुछ चला गया होगा
तभी लागतार निकल रहा है 
ये खारा पानी 
जो मेरा स्वाद भी बिगाड़ रहा है ।
अब मैं कस कर भींच ले रहा हूँ खुद को 
फिर आवाज़ कही सुनायी नहीं पड़ेगी 
और ये खारा समुद्र भी सूख ही जायेगा 
थोड़ी देर में ।
सच में सच कह रहा हूँ मैं ।
मैं रो नहीं रहा हूँ ,सच में ।

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