बस इतना बयांन देकर उसने ख़ुदकुशी कर ली
कहते बड़ी जाति पर भूखा बीमार बेरोजगार हूँ |
कहते बड़ी जाति पर भूखा बीमार बेरोजगार हूँ |
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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