सोमवार, 14 सितंबर 2015

जब और जितनी बार भी अपने घर लौटता हूँ और दरवाजा खोलता हूँ बिजली सी कौंध जाती है और दीवारो पर बन जाती है अंनगिनत तस्वीरें और मन का बादल बरस उठता है । लहरो पर तैर जाती है यादो की कितनी कागजी नावें और कागज की नाव तो कागज की ही होती है खो जाती है अथाह पानी में और सन्नाटा पसर जाता है दीवारो से छत तक और बैठक से बिस्तर तक जब और जितनी बार भी अपने घर लौटता हूँ और दरवाजा खोलता हूँ बिजली सी कौंध जाती है और दीवारो पर बन जाती है अंनगिनत तस्वीरें और मन का बादल बरस उठता है । लहरो पर तैर जाती है यादो की कितनी कागजी नावें और कागज की नाव तो कागज की ही होती है खो जाती है अथाह पानी में और सन्नाटा पसर जाता है दीवारो से छत तक और बैठक से बिस्तर तक ।

जब और जितनी बार भी
अपने घर लौटता हूँ
और
दरवाजा खोलता हूँ
बिजली सी कौंध जाती है
और
दीवारो पर बन जाती है
अंनगिनत तस्वीरें
और
मन का बादल बरस उठता है
लहरो पर तैर जाती है
यादो की कितनी कागजी नावें
और
कागज की नाव
तो कागज की ही होती है
खो जाती है अथाह पानी में
और
सन्नाटा पसर जाता है
दीवारो से छत तक
और
बैठक से बिस्तर तक

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