पहले हमसे यारी कर
मिल करके गद्दारी कर
मैं हारूं और जीते तू
ऐसी साज़िश भारी कर ।
मिल करके गद्दारी कर
मैं हारूं और जीते तू
ऐसी साज़िश भारी कर ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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