गुरुवार, 29 जून 2017

कल सपने थे आंखों में आगे ही बढ़ते जाएंगे

कल सपने थे आँखों में आगे ही बढ़ाते जायेंगे
जितने भी पीछे थे कल हम आगे चढ़ते जायेंगे |

जिसने दर्द नहीं झेला था आजादी की जंग का
जिसका नज़रिया इस पर इतना ज्यादा तंग था
झूल रहे थे फंसी पर जब ये मुखबिरी कराते थे
वतन के लड़ने वालो को ये जेल जेल पहुचाते थे |

कहा कल्पना की थी हमने केि ये शासन में आयेंगे
तब गद्दारी की थी देश से अब ये ही देश मिटायेंगे |



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