मैं भीड़ में गुम हो जाना चाहता हूँ
पर
भीड़ और मेरे बीच इतनी दूरी है
कि
न मेरी आवाज उसे सुनाई पड़ती है
और न मैं उसे दिखाई पड़ता हूँ
मुझे भी नही दीखती है वो भीड़
बस सुनाई पड़ती है कानो में आवाज़
कही दूर से अपुष्ट ,अस्पष्ट
और
में ढूढने लगता हूँ उसे पागल जैसे
पर
भीड़ ने लगातार दूरी को कायम रखा है
और मुझे धलेक रही है लगातार
एकाकीपन की तरफ ।
पर
भीड़ और मेरे बीच इतनी दूरी है
कि
न मेरी आवाज उसे सुनाई पड़ती है
और न मैं उसे दिखाई पड़ता हूँ
मुझे भी नही दीखती है वो भीड़
बस सुनाई पड़ती है कानो में आवाज़
कही दूर से अपुष्ट ,अस्पष्ट
और
में ढूढने लगता हूँ उसे पागल जैसे
पर
भीड़ ने लगातार दूरी को कायम रखा है
और मुझे धलेक रही है लगातार
एकाकीपन की तरफ ।
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