रविवार, 16 सितंबर 2018

तुम भी डूब कर फिर चमक सकते हो |

किसी के लिए मुझ सहित बहुतो के लिए मेरी लिखी ये कविता ---------------
आप कितने भी मजबूत हो
आप के इरादे कितने भी अटल
पाँव कितने भी अभ्यस्त
और हाथ कितने भी हुनरमंद
मन कितना भी वश में
और दिमाग कितना भी तीक्ष्ण
पर फर फिर भी
जीतने वाले घुड़सवार की तरह
हर युद्ध फतह करने वाले योधा जैसे
हर कुश्ती जीतने वाले पहलवान जैसे
सारी पहाड़ियाँ चढ़ चुके पर्वतरोही जैसे
किसी कमजोर छण में
आप भी धराशायी हो ही जाते है |
पर गिर कर फिर सम्हल जाना
अगर जानते आप
तो फिर
भविष्य आप का भविष्य होता है
और
गिरने की कमजोरी से कमजोर हुए
या
नहीं निकल पाए इस एहसास से
तो घुटन भविष्य का गला घोट देती है |
इसलिए भूलो हर फिसलन को
और हर मार्ग के अवरोध को
बना लो
फिसलन को भी एक सुगम मार्ग
और
अवरोधों को दूर झाँकने की सीढ़ी
सीख लो गलतियों से सबक
और चल पड़ो
अपनी गंतव्य को
पूरे मनोवेग के साथ
देखो वो डूब कर उगता हुआ सूरज
तुम्हे आवाज लगा रहा है
और कह रहा है
की
तुम भी डूब कर फिर चमक सकते हो |

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