रविवार, 18 अगस्त 2019

ट्रंक काल

ट्रंक काल
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पहले भी होता था फोन
पहले तो बड़ा सा काला सा

बात किसी से होती थी
सुनते सब थे पास बैठे हुए
बाद में आये नाजुक से रंग बिरंगे
और कार्डलेस भी

पर उससे पहले
लोगो के यहाँ फ़ोन भी नहीं होते थे
लोगो के यहाँ क्या
शहर भर में

कुछ गिने चुने लोगो के यहां
होते थे फोन
और
वो बहुत रईस होने की निशानी था
गाँव क्या ब्लोक और तहसील में भी
नहीं था कोई फोन
और बुक करनी होती थी ट्रंककाल
बहुत से लोग बुक करते
और बुक करने को लाइन में लगे होते
पूरा दिन निकल जाता और पूरी रात
नहीं मिलता था फोन तब
जिसका मिल जाता था
वो विजयी भाव ओढ़ लेता था
और बाकि उसे इर्ष्या से देखते थे
ड्यूटी लगती थी परिवार के लोगो की

एक इंतजार करता था काल लगने का
और खाने या सोने चला जाता था
जी हां ट्रंककाल लगना भी तब
ईश्वर की कृपा

और किस्मत की बात थी
जब मिल जाता था फ़ोन
तो चीखना पड़ता था
की आवाज वहा तक पंहुच जाये
कई बार तो हेलो हेलो
आप सुन रहे है न
कहता ही रह जाता था आदमी

और काल कट जाती थी
कई कई बार में बात हो जाती थी
और
नहीं भी हो पाती थी

जी हा ऐसा होता था ट्रंककाल
तुम क्या जानो बाबु ट्रंक काल
जिसके हाथ में है एंडोरायड फोन
और ४ जी तथा ३ जी
उस थ्रिल को बस

महसूस कर सकते हो
अतीत में जाकर

जरा जाकर महसूसो

और सोचो की
अपनो की जिंदगी
कितनी मुश्किल थी पहले
ट्रिन ट्रिन
मिल गया मेरा ट्रंक काल
तो मिलते है ट्रंक काल के बाद

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