क्या सचमुच वो
बादलो पर रहता है ?
क्या सचमुच वो हमे
देखता रहता है ?
क्या
ये उसके ही आँसू है
जो
बारिश की शक्ल मे जमीन पर आते है ?
और
हमे भिगोकर
छू लेना चाहते है ?
क्या सचमुच ?
तो छू क्यो नही लेते आकर
हमारे पास सचमुच ?
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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