मंगलवार, 18 अगस्त 2020

त्यौहार और व्यवहार

त्यौहार और व्यवहार 
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जी हां 

त्यौहार अब भी होते है पहले भी होते थे 
अब गरीब है तो 
बस लोगो को को मनाते देख लेता है 
या थोडा बहुत मना भी लेता है 
मध्यम वर्ग है तो दिखावे के लिए 
बजट बिगाड कर भी मनाता है 
उच्च वर्ग है तो कहने ही क्या 
किसी पद पर है तो वो नही मनाता 
लोग मनाते है उसका त्यौहार 
और लोगो के दिए सामानो  से 
भर जाता है घर का कमरा
जिनसे काम है उनके अलावा 
कोई किसी से नहीं मिलता 
अब किसी भी त्यौहार में 
मेसेज है न मन गया त्यौहार 
और 
मान लिया गया उसे ही मिलना 
लोगो का और शुभकामनाओ का 
त्यौहार पहले भी होते थे जो पैसे से नहीं 
भावनाओ से मनाये जाते थे 
गरीब अमीर सब खुद इन्तजाम करते थे 
त्यौहार मनाने का 
इतना फर्क था कि
अमीर के काम नौकर कर देते थे 
पर बाकी सब एक समान थे 
होली हो तो रंग सबके पास था 
और पिचकारी भी चाहे पीतल की ,लोहे की 
नहीं तो बांस को काट कर बनायीं 
गरीब की खुद की 
फूहड़ता नहीं 
बल्कि सबको सबसे मिलने वाले 
आनंद का त्यौहार था होली 
गाँव में तो झुण्ड बना कर निकलते थे सब 
उम्र के हिसाब से 
अपनी अपनी भाभियों से होली खेलने 
गुझिया बनाने में पूरा परिवार जुटता था 
बच्चे भरते और मोड़ते या काटते थे 
माँ बेलती थी तो पिता सेंकते थे गुझिया 
बेईमानी की भी गुंजाइश थी 
किसी किसी गुझिया में 
ज्यादा मावा भर कर खुद खा लेने की 
और सेव झाड़ना सेंकना 
कई दिनों तक चलता था त्यौहार 
दीपावली में पतली डंडियो 
जो आम तौर  पर नरगट 
या अरहर की होती थी 
तीन तीन को इस तरह बांधना 
की उस पर दिया रख सके 
और दरवाजे के सामने उन्हें सजाना 
शहर में पहले तो छोटे छोटे दिए 
और बाद में मोम्बत्तिया आया गयी 
तब भी कई दिन पहले से 
मिठाई जैसी चीजे बनती 
अपने ज्ञान और हैसियत के हिसाब से 
कई दिनों तक तैयारी होती थी 
पर जो तब था और आज नहीं है 
वो था समूह में मनाना या समाज में 
तब फोन और मोबाइल नहीं थे 
तो लोग मोबाइल रहते थे 
खूब मिलते थे एक दूसरे से 
त्यौहार में एक परिवार आकर मिला गया 
तो इसका मतलब ये नहीं की मिलन पूरा हो गया 
अगले दिन ये पूरा परिवार उनके घर जाता था 
और चलता था कई दिनों तक ये क्रम 
और फिर पूरा होता था त्यौहार 
जी हां त्यौहार एक परिवार नहीं 
पूरा समाज मनाता था एक दूसरे के साथ  
जो कही खो गया लील लिया नये ज़माने ने 
औरआर्थिक दिखावा 
हीन भावना पैदा कर देता है आज बहुतो में 
देखा होगा आपने भी 
जब आप बहां रहे होते है सफ़ेद या काला धन 
तो बहुत सी उदास आँखे 
उसे बस टुकुर टुकुर देख रही होती है 
जो पहले के सादे त्योहारों में नहीं होता था 
और तब केवल त्यौहार नहीं 
सच्चा व्यवहार भी होता था

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