बुधवार, 5 अगस्त 2020

जहा भी झुका सर

जिसके भी सामने 
झुका ये सर 
वो बस वो ही 
जानता है 
अपना घाव और पीड़ा 
संसद की सीढियो के सामने 
लेटा था कोई 
तब से 
संसद और उसकी परम्पराएं 
सिसक रही है
सुना है कि 
टूटने वाली है 
वह भव्य संसद 
जिसने देखा है 
भारत की आज़ादी का उगता सूरज 
और सारा इतिहास 
अब 
फिर लेट गया कोई 
भारत की आस्था 
और 
विश्वास के सामने ?

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