जिसके भी सामने
झुका ये सर
वो बस वो ही
जानता है
अपना घाव और पीड़ा
संसद की सीढियो के सामने
लेटा था कोई
तब से
संसद और उसकी परम्पराएं
सिसक रही है
सुना है कि
टूटने वाली है
वह भव्य संसद
जिसने देखा है
भारत की आज़ादी का उगता सूरज
और सारा इतिहास
अब
फिर लेट गया कोई
भारत की आस्था
और
विश्वास के सामने ?
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