मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

सैकडो प्रणाम जयप्रकाश तेरे नाम रे दुनिया जहांन सब आकाश तेरे नाम रे ।

जयप्रकाश नारायण जी के निधन के बाद लिखी मेरी कविता -

सैकडो प्रणाम जयप्रकाश तेरे नाम रे 
दुनिया जहांन सब आकाश तेरे नाम रे ।

तुझको दुख तो होता होगा स्वर्ग की उस उंचाई पर 
हंसी तो तुझको आती होगी इस सारी सच्चाई पर 
तुझको तेरे बेटो ने ही तिल तिल कर के मारा है 
कौन जनम के पाप की बेटे आये इस नीचाई पर 
कैसी ऊबड़ खाबड़ बीती जिन्दगी की शाम रे 
सैकड़ो प्रणाम ----

सन 42 का योद्धा अब कैसा मजबूर हुआ 
77 के आते आते सारे जहां मशहूर हुआ 
पर अपने बेटो बेटी के हाथो दुर्दिन क्या आये 
एक ने दे दी काल कोठरी 
दूसरो से दूर हुआ 
घोड़े तूने साधे पर लगाई ना लगाम रे 
सैकड़ो प्रणाम ---

तूने देश की खातिर तोडी थी जेल की दीवारे 
47 के पहले तेरी गूजती थी हुन्कारे 
पर बाद मे तुझको लगा की देश अभी आज़ाद नही 
इसिलिए 75 मे गूजे थे तेरे फिर नारे 
आज़ाद कराया था जो देश था गुलाम रे 
सैकड़ो प्रणाम ---

पर तुझको भी पता नही था फिर वही सब होना है 
अपने गान्धी की तरह तुझे भी अन्धकार मे खोना है 
देश की जनता को फिर वही व्यव्स्था शासन ढोना है 
रामराज के कर्णधारो को फिर गद्दी पर सोना है 
कहते थे प्रधान की खुदा ना वो इंसान रे 
सैकड़ो प्रणाम ----

अब तेरे बेटे तेरा इक स्मारक बनवाएंगे 
आंसू वही बहायेंगे और कसमे भी वही खायेंगे 
गंगाजल से धोए कोई कोई पत्थर मारेगा 
अपने अपने झंडे मे सब तुझको अब चिपकायेंगे 
गलियो गलियो बिकोगे तुम वोटो के दाम रे 
सैकड़ो प्रणाम ---

देश के नवयुवको मिल बोलो गांधी लोहिया जयप्रकाश 
गूजे सारी धरती और गूंज उठे सारा आकाश 
जो भुनाते गाँधी लोहिया और जयप्रकाश को 
आओ मिलकर अब हमे करना है उनका सत्यानाश 
एक व्यव्स्था नई बनाये सब मिल खासो आम रे 
सैकड़ो प्रणाम जयप्रकाश तेरे नाम रे ।

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