मेरी राहो में कांटे
जिसने भी बिछाये
जब वो मेरे पांव में चुभे
और
जोर से चीखा मैं दर्द से
जरूर उनके कानो के
परदे भी हिले होंगे
और दुख रहे होंगे अभी तक
दोस्त
मेरा घाव शायद जल्दी भर जायेगा
क्योकी बेजान कांटे से हुआ है
पर तुम्हारा नहीं भर पायेगा जल्दी
क्योकि
इंसानी चीख से घायल हुए हो तुम ।
इंसान की जब भी निकलती है चीख
या कराह
वो छलनी कर देती है अंदर तक
और दीखती भी नहीं
पर
अचेतन में हथौड़े की तरह
चोट करती रहती है जिंदगी भर ।
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