अन्दर इतना तूफ़ान सा क्यो है
मन इतना परेशांन सा क्यो है
न कोई बात है,न कोई भाव ही
दर्द इतना मेहरबान सा क्यो है |
दर्द मन में,दिमाग में,लहू में भी
दर्द तन में,दिल औ वजूद में भी
दर्द साँस ,धड़कन औ रूह में भी
ये दर्द हुआ आसमान सा क्यूं है |
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें