शनिवार, 14 अगस्त 2010

मैं खडा रहने की कोशिश करता हूँ

मै खड़ा रहने की कोशिश करता हूँ
कोशिश करता हूँ की मै भी चलता रहू और जिंदगी भी
साथ चलने वालो को कोई दुःख ना हो कोई कमी ना लगे
लेकिन लगता है की मै उतना समर्थ नहीं हूँ जितना वो

पहले बड़े बुरे बुरे समय देखे बल्कि बदतर समय देखे
लेकिन हारा  नहीं मै कभी भी, हिचका भी नहीं मै
पर अब हारने तों नहीं हिचकने लगा हूँ
मेरा तों मूल वाक्य रहा है
की मै हरूँगा नहीं ,रुकूंगा नहीं
क्या मेरा अकेलापन मुझे हरा देगा मुझे झुका देगा
प्रयास तों अंतिम समय तक करूंगा की चलता रहू, चलाता रहू
सब उसी शान से, उसी दृढ़ता से, उसी सम्मानजनक व्यवस्था से
लेकिन मै ईश्वर नहीं साधारण मनुष्य हूँ
जब तक सामर्थ्य है तभी तक चलूँगा
जब तक हिम्मत है तभी तक रुकूंगा
फिर मेरा भी तों सफ़र और गंतव्य निर्धारित है
मेरा शरीर हो ,मन हो ,दिमाग हो या हिम्मत
सबकी सीमाए तों निर्धारित है
फिर सकल्प तों यही है की उनकीं कमी मेरे अलावा किसी को ना खले
चाहे जितना भी संघर्ष किया है अब किसी का जीवन संघर्ष में ना पले
जब साँस है, आस है, मै हूँ, हारूंगा नहीं,
रुकूंगा नहीं,तकलीफों और संघर्षो के सामने झुकूंगा नहीं |

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