शनिवार, 14 अगस्त 2010

दरवाजे कि कुण्डी खटकी मत खोलो दरवाजा जी

दरवाजे की कुण्डी बोली ना खोलो दरवाजा जी
डाकू सारे निकल पड़े है बजा रहे है बाजा जी   |


थाने बाहर ह्त्या हो गई थानेदार मुह फेरा जी
सट्टा,मटका दारू भट्टी वही है उसका डेरा जी
भले आदमी दूर दूर और गुंडे घर के अन्दर जी
हर घटना में हिस्सा तय है ये तों बड़ा कमेरा जी


मेले में ही लाज लुट गयी लाज नहीं थी आइ जी
वो चीखी थी बचा लो भैया पर नहीं कोई भाई जी
अपने घर कि लुटती कायर तब भी ऐसा करते जी
गुंडा छूट गया इज्जत से नहीं थी कोई गवाही जी


बस्ती से बच्चा उठा ले गए जी था वहा अँधेरा जी
समझो ये बस्ती में हो गया अब गुंडों का घेरा जी
नानी मर गयी जाने दो प़र मौत तों घर देखा जी
उसका बच्चा वो उसका था पर अब नंबर तेरा जी


अध्यापक है विषय अलावा बाकी सब है जाने जी
बहुत बड़ा धन पशु बनना है मन में ये है ठाने जी
कई गाड़िया कई हो बंगले तब अपना जी माने जी
मुर्गा विस्की, नई नई शिष्या तब गायेंगे गाने जी


आसमान में ईश्वर अल्ला नीचे तों पत्रकार है जी
राम कृष्ण को राह दिखा दे ये इतने फनकार है जी
गाँधी नेहरु या सुभास सबको इनकी दरकार है जी
जब चाहे जिसकी बनवा दे सब इनकी सरकार है जी


ये अफसर आज के राजा इनका है क्या कहना जी
एक परीक्षा  फिर देश को साठ साल तक सहना जी
कुछ ना करना काम टालना आँख में पैसा रहना जी
गंगा जमुना कही से आये , इनके घर से बहना जी


ऊपर वाले से ये मिलवाते इनका बड़ा है खेला जी
क्या क्या बेचे क्या ना बेचे इनका बड़ा झमेला जी
सादगी पर प्रवचन होगा पर करोड़  का मेला जी
सुन्दरियो कि बड़ी फ़ौज है इनका हरम अलबेला जी


अरबपति व्यापारी है दानी रोज नहाते गंगा जी
नकली बेंच मिलावट कर  दबा दिया है चंगा जी
इनके घर में मने दिवाली औरो के घर मातम जी
धंधे में उन सबका चंदा जो लूट करे या दंगा जी


नेताजी थे सुभाष बाबू पर ये भी नेता कहलाते जी
उन सबने सब कुछ छोड़ा ये सब है घर ले जाते जी
ससद से भत्ता और सुविधाए बाहर मन बहलाते जी
देश बच गया खाने को है बाकी सब कुछ खाते जी


भारत है कितना महान कि फिर भी बढ़ता जाता जी
भारत के गौरव का सूरज , ऊपर चढ़ता जाता जी
हम थोड़े ईमानदार होते तों भारत का क्या होता जी
सबसे आगे होता भारत और हसती भारत माता जी

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