शनिवार, 14 अगस्त 2010

लोगो के सफ़र से जल रहे हो

लोगो के सफ़र से जल रहे हो
हमारे साथ क्यों ना चल रहे हो

पुरानी है कहावत अब भी नयी है
कहावत है लेकिन बिलकुल सही है
चलना बस चलना ही  जिंदगी है
रुके बस रुक गए तों मौत ही है

उठो चलो तुम जीवन भर चले हो 
अकेले हो नहीं संग चल रहे हो

चाँद कितना दूर था अब पैरो के नीचे
बुद्ध ,मंगल आज अपनी ओर खींचे 
इंसा कल शायद नया सूरज उगा दे
और सागर से ग्रहों पर फसले सींचे ,

ठान लिया,चल दिए तों सफल रहे हो


तूने पहाड़  काट कर नदिया निकाला
तूने बांधा हाथी और शेर चीता पाला
हवा में उड़ना समुद्र पर चलना सीखा
तुम  ढले पर ईश रचना को भी ढाला

बर्फ पर दौड़े  नहीं और फिसल रहे हो

आग जैसी भी हो बुझाना जानते  तुम
गर धीमी पड़ गयी जलाना जानते तुम
आग दावानल बन कभी सब लील जाती
उस आग पर चल बढ़ जाना जानते तुम

आग पर हम चल रहे है  तुम चल रहे हो

कैसा  छलना किसको छलना जानते तुम
नश्वर जिंदगी किसको अपना मानते तुम
जो दिख रहे ये सब मरे है गीता में लिखा है
फिर क्यों दिलो  में नफरतो को पालते तुम

ख़ुशी विश्वास बांटो तों तुम  भी फल रहे हो .

है उचाइयां छूना तों  बस हाथो को बढ़ा दो
बातें नहीं आत्मविश्वास पर हिम्मत चढ़ा दो
हिम्मतें मर्दा मरदे खुदा  सुना होगा तुमने
हिम्मत बांध लो  और  पावो  को  बढ़ा दो


फिर देखो मंजिल डर मंजिल चल रहे है .

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