लहू तों मेरे जिगर का बह रहा है
दर्द कौन कौन कितना सह रहा है,
हकीकत सब ही जानते है लेकिन
दर्द कौन कौन कितना सह रहा है,
हकीकत सब ही जानते है लेकिन
कोई भी कुछ भी नहीं कह रहा है|
मै आसमानों में सूराख कर रहा हूँ
मै आसमानों में सूराख कर रहा हूँ
अपने लहू से हर गढ़े को भर रहा हूँ
कहते है धीरे ही सही मै मर रहा हूँ
समंदर की तरफ दरिया बह रहा है|
उधर ऊंचाइयां इधर गहराइयों को देख
हार मत जीवन कि सच्चाइयों को देख,
गिरा तो गिरने कि अच्छाइयो को देख
लड़ाई में खड़ा है तू यही तो कह रहा है|
देख चींटी गिर रही और फिर चढ़ रही है
वो मधुमक्खी भी क्या क्या सह रही है,
घोंसले तो जतन से उस गौरैया ने बनाये
वो दूर बैठी है उसमे और कोई रह रहा है|
सिकंदर है तू तों तुझे लड़ना ही होगा
मंजिल सामने है तुझे बढ़ना ही होगा ,
वो दूर बैठी है उसमे और कोई रह रहा है|
सिकंदर है तू तों तुझे लड़ना ही होगा
मंजिल सामने है तुझे बढ़ना ही होगा ,
शिखर तक तुझको तों चढ़ना ही होगा
मुसीबतों का किला था अब ढह रहा है |
मुसीबतों का किला था अब ढह रहा है |
सूरज है नही पर रोशनी तों दिख रही है
नजर तों उस पर नही कोई टिक रही है ,
विश्वास हो तो खुद नया सूरज उगा दो
सूरज तों अपनी मुट्ठियों में रह रहा है|
निराश है तों क्या विश्वास खो दिया तूने
गीता पढ़ा औ कुछ सबक नहीं लिया तूने ,
कुछ काम तेरे तो कुछ अपने पास रखे है
उस पर भी छोड़ ऊपर वाला ये कह रहा है|
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