बुधवार, 16 मार्च 2011

नफरतो को होली में इस बार जलाये

यहाँ वहा आज देखो होली हो रही
वहा पे हंसी  यहाँ ठिठोली हो रही

तय था होली एक दिन मनाई जाएगी
होली में  बुराई  सब  जलाई  जाएँगी 
खुशियों से खेलेंगे हम रंग औ गुलाल
गले मिल कर दोस्ती  बढाई  जाएगी

एक दिन नही अब तों  रोज होली है
जी हा आज कि ये नई सोच होली है 
होली गुजरात कि कश्मीर कि होली
सड़क हो या रेल बस होली  होली है

होली में जलाये भी तों कौन लकड़ियाँ
मिल रही है मुफ्त में तमाम लड़कियां
रेल, बस, घर  जलाने का अधिकार है 
रोके कौन सबने बंद की है खिड़कियाँ  

होली का हुड़दंग हो या लोगो की चीख
यहाँ वहा जो भी मिले पहले उसे  खींच
आग में जलादे  चाहे खंजर पर उछाल
पानी से नही अब जमी लहू से ही सींच

देखो कही बम तों कही गोली चल रही 
चारो ओर खून की बस होली चल रही
हम नहला रहे है अपनी माँ को लहू से
नफ़रत की ही बस यहाँ बोली चल रही 

ऐसी होली भारत में और कब तक चलेगी
नफरत की कहानी भला कब तक  पलेगी 
जले राम का हवेली या रहीम  का मकान
इंसानियत की होली ऐसी कब तक जलेगी

आओ ऐसी होली पर विराम लगाये
भाई चारे की कहानी फिर से सुनाये
आओ इंसानी जज्बे  को हम जगाये 
नफरतो को होली में इस बार जलाये

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