बुधवार, 13 अप्रैल 2011

कितना गरीब हूँ मै कि आंसू तो है

क्या होता है और क्यों होता है जब 
आंसू आते है, मन करता है की जोरे से रोयें 
बिलकुल बचपन की तरह बुक्का फाड़ कर 
और रो नहीं पाते है |
बस घुटते रहते है, अंदर ही अंदर 
बड़ा क्या हुए, खुल कर रोने का अधिकार भी नहीं 
हँसने की जबरन कोशिश भी रुला देती है 
रोना तो कही मन की, दिल की गहराइयो से आता है 
कोई तो बता दो कैसे रोये, कहा रोये ?
कोई कोना नहीं है छुपाने को 
कोई कन्धा नहीं है सिर रखने को
कोई हाथ नहीं सिर सहलाने को 
कोई गोद नहीं ,सुबकने को 
कोई सीना नहीं हिचकी लेने को
कितना गरीब हूँ मै कि आंसू तो है 
पर रोने की  जगह मेरे पास नहीं 
जुबान भी नहीं बची या दब जाती है 
उसे दबा कर रोने लगता हूँ जोर जोर से
जिसे केवल मै सुन सकू 
अँधेरे में अपने बिस्तर पर या 
उस फोटो के सामने बैठ कर 
जो रोने नहीं देती थी 
जो आधार था हँसने का 
पर मै खुल कर जोर से कैसे रोऊ 
कब तक दबाऊँ मै भावनाओं को फूटने से 
नहीं रोऊंगा जोर से, तो मै फट पडूंगा जोर से |



 


1 टिप्पणी :

  1. इतनी भीड मे भी तन्हा हू मै,
    देख तेरे बगैर कितना तन्हा हू मै.
    अब तो ये जानना भी मुश्किल है,
    मै हू यहाँ, पर कहाँ हू मै.

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