सोमवार, 4 नवंबर 2013

नहीं जन्म ले रही है कविता कई दिनों से

नहीं जन्म ले रही है
कविता कई दिनों से
कलम चलती ही नहीं
दिल सूख गया है
कोई हलचल नहीं होती
तो कैसे जन्म ले कविता
कुछ नहीं सूझता अब
लगता ही नहीं कि कुछ जीवन है
और
उसमे कुछ करना भी है
जैसे एक बड़ा ह्रदय आघात
ख़त्म कर देता है सब कुछ
वैसे ही किसी आघात ने
ख़त्म कर दिया है मुझे
और जो ख़त्म ही हो गया
उसकी कैसी हलचल ,क्यों हलचल
बस जिन्दा लाश के सामान
घिसट रहा हूँ बस समय पूरा करने को
तो कहा से कविता पैदा होगी
और कैसे चलेगी कलम ।

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