रविवार, 21 जून 2015

भीड़ इतनी है आसपास पर

भीड़ इतनी है आसपास पर
मन में ये तूफ़ान सा क्यों है
मुस्कराते हुए चेहरे है सब है
हर कोई अनजान सा क्यों है ।
कोई अपना सा लगा ही क्यों
फिर ये बियाबान सा क्यों है
आशंकाए इतनी क्यों तारी है
मन में ये शमसान सा क्यों है ।
छोड़ कर लौट चला है आशिक
टूटा हुवा और बेजान सा क्यों है ।
कोई तो अपना सहारा भी होगा
दिल हुवा ये असमान सा क्यों है ।

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