रविवार, 21 जून 2015

उस दिन अपने गाँव गया था

दुखी हुआ मन, जब  
उस दिन अपने गाँव गया था
क्या सोचा था कि क्या होगा
कुछ भी वैसा ना निकला था
सब  कुछ बहुत बुरा बुरा था
जो छोटे थे बुड्ढ़े लगते
बड़े तो अब नहीं ही दीखते
वे दोनों तालाब खो गए
सम्मो मायी या काली मायी
सब उदास और बहुत अकेली
मंदिर का दरवाजा
औंधे मुह पड़ा हुआ था 
कुए सारे कही बिलाए
आम या जामुन या पाकड़ सब
दूर दूर तक नजर न आये
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न वो अपनापन ,न वो शिकायत
बस दिखावे मरने में और जीने में भी
केवल झूठी शान की बातें
नहीं थी मेरी चाची पर शोक नहीं
वहां  जश्न मना था
कैसे मैंने खाया उस दिन
सबको क्या देखूं
खुद मेरा घर बेगाना था
मेरा कमरा नहीं
मेरे लिए मेहमानखाना था
जिसको ठुकरा कर
मैंने अपनी भावनाओ को रोका था
सब बदल गया है
सभी स्वार्थी ,सभी के मन में
बस घात  है
बस मैं कुछ देदूं तो अच्छा हूँ
गर मैं कुछ अपना कह दू
तो फिर मैं मंजूर नहीं हूँ
भाग चला मैं दो दिन में ही
मेरे गाँव से
पर घूमा था पूरा दिन और यादें ताजा की
फिर जाते जाते मुड़ कर देखा
विदा कह दिया रोते मन से
मेरे गाँव को
पर बाबा की यादो को कैसे छोड़ू मैं
कैसे भूलू मैं सारी अच्छी यादो को
जो मुझमे पैबस्त कही है गहरे तक
         +
गाँव तो बस कहने को हैं
शहरों से होड़ बड़ी है कि
बड़ी बुराई कैसे सीखे और
शहर को कैसे पीछे छोड़ें
शायद ये अंतिम यात्रा हो मेरे गाँव की
बहुत दुखी मैं
क्यों मैं ऐसे गाँव गया था
,सब कुछ तो बदल गया था
अब मेरे आंसू सूख गए है और
मैं दर्द को भूल गया हूँ
हैं कोई देवी  देवता इतने करोड़ में
जो लौटा दे मेरा गाँव वो
पर वे भी हार गए हैं
पोखर के ऊपर की वीरानी और
 उनकी हालत बया कर गयी
छोडो अब सब भूलो भैया
बस यादो में झूलो भैया
गाँव की कहानी ,गाँव की कविता
गाँव का गाना लिखो भैया
ताकि बच्चे पढ़े और जाने कि
गाँव बहुत अच्छा होता है।





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