अब हमे जीने का मज़ा आने लगा है
खुद का दिल खुद को बहलाने लगा है
ये आंख से बहता समन्दर देखते सब
दिल आँख से पैमाना छलकाने लगा है ।
खुद का दिल खुद को बहलाने लगा है
ये आंख से बहता समन्दर देखते सब
दिल आँख से पैमाना छलकाने लगा है ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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