रविवार, 21 जून 2015

प्राणों से प्यारा हमें अपना वतन

प्राणों से प्यारा हमें अपना वतन ,अच्छा लगता है हमें देश का बंधन

भारत के आगे सब जहान क्या था क्या बताये यारो ये स्थान क्या था
देवता भी ललचाये पैदा होने को ,क्या बताये भाई हिंदुस्तान क्या था

आइये पुराना इतिहास देख ले धुंधला पड़ा जो वो प्रकाश देख ले
वर्तमान पर जो कालिमा छाई आने वाले कल का आभास देख ले 

यही कभी गीता का प्रभाव दिखा था यही पर किसी ने रामायण लिखा था
बुद्ध महावीर की वो  वाणी गूंजी थी सभ्यता सभी ने तों यही से सीखा था
यही तानसेन की वो तान गूंजी थी राणा और शिवाजी की भी शान ऊँची थी
एक गया तों   दूसरा पैदा हो  गया यही  देवताओ  की वो  लम्बी सूची थी

गूंजता था वेद और पुराण का वचन प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

जौहर वाली होली यही होती थी कभी चित्तौड़ी टोली यही होती थी कभी
कह दिया तों कह दिया फिर कैसा हटना ऐसी बोली यही होती थी कभी
और यही कर्ण ने भी जन्म लिया था गुरु को अंगूठा भी तों यही दिया था
हरीशचंद्र  भी तों यही  पैदा हुए थे पन्ना धाई  को  भी  कोई भूलोगे  कैसे
मंगल पाण्डेय वाली वो कहानी याद है रानी झाँसी वाली तों जुबानी याद है
किसे याद रहेगा ना विद्रोही सुभाष भगत और आजाद की क़ुरबानी याद है

यही पर जनम हो और यही पर मरण प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

तुलसी की चौपाई  यही मिलती सूर की ये कविताई यही मिलती
यही है कबीर का निर्गुण स्वरुप दिनकर की गरमाई यही मिलती
बच्चन पन्त और निराला भी यहाँ प्रेमचंद ढूढने तुम जाते हो कहा
याद है तुम्हे अगर रसखान की कृष्ण की मीरा भी तों हुई थी यहाँ 
एकला चलो  वाले वो   टैगोर थे   इक़बाल भी तों बड़े  घनघोर  थे

जाने कितने हुए है साहित्य रतन प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

इस मिट्टी में हीरे मोती की भरमार है खेतो में पैदा होता सोना अपार है
माँ  की गोद  में  है जैसे  दूध  बह रहा गंगा  यमुना   की ऐसी दो धार है 
राखी का त्यौहार बड़ा प्यार का होता दशहरा तों सारे ही संसार का होता
दिवाली में खुशिया मनाई जाती है होली का त्यौहार तों मनुहार का होता

लोग मिलते है और बंधता है बंधन प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

कितनी ही जातियां  और धर्म है कितनी बोलियाँ और कर्म है
पर सबकी जाति हिदुस्तानी है सबके दिलो का बस यही मर्म है 
हिन्दू हो चाहे वो  ईसाई हो, पारसी हो चाहे मुस्लमान भाई हो
सबका तन औए मन एक है जी हाँ  सारा ही हिंदुस्तान भाई है

रहे खुशहाल करो करो ऐसा जतन प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

पर मेरे देश को क्या होता जा रहा अपने गुणों को कहा खोता जा रहा
देखो  अन्धकार ही  दिखाई  पड़ता  कही   नही रास्ता सुझाई  पड़ता 
देखो चारो ओर  बस भ्रस्टाचार है यहाँ तों सम्बन्ध भी हुए व्यापार है
राजनीति   का क्या हाल मै  कहूं  कैसे  कैसे  हुए  है कमाल क्या कहू 
इतने सालो लुटेरो ने हमको लूटा है जो भी कहा सब ही  दिखा झूठा है

ये कैसा हो गया देश का चलन प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

क्या कोई बताएगा मुझे एक बात बड़ी कोशिश की पर हुई नही ज्ञात
कहाँ  गई  आज मेरी  सोन   चिरैया कैसे  उजड़ी है  ये  तिरंगी मड़ैया 
चन्द्रगुप्त वाला वो  शासन है कहा अकबर वाला वो  प्रशासन है कहा 
कर्ण  वाली कहा वो   दानप्रियता  भारत   की जानी  बलिदानप्रियता

आज क्यों लुटता है लाशो का कफन प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

दो  लोग लेके  चलें रक्षामंत्री  को पूरी  गिनती  ना  आये वित्तमंत्री  को
सीमा पर जवान अपना खून बहाए भारतरत्न  मिलता है प्रधानमंत्री को
यहाँ लोकतंत्र  की अजब थाती है   मेरे भूखे भारत को ये  कैसे भाती है 
कैसे पेट भरेगा इस भूखे भारत का जब एक एक सीट  करोड़ खाती है

कैसा उजड़ा है इस देश का चमन प्राणों से भी प्यारा हमें अपना वतन

[और अगर हम लोग नहीं सुधरे तो --------------------------------]\
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आइये कल  की  भी बात बात दूं आने वाली  कल की तस्वीर दिखा दूं
सड़को पर कल खून बहना यहाँ मेरी भी तों इच्छा है की मै भी बहा दू
सडको पर कल  यहाँ   आग लगेगी कल यहाँ    जनता जरूर  जगेगी 
कल ये व्यवस्था जलेगी आग में  भुखमरी  गरीबी  कल  जरूर भगेगी 

कल इस व्यवस्था को मिलेगा कफ़न फिर भी अच्छा लगे अपना वतन

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