बुधवार, 16 सितंबर 2015

मेरी राहो में कांटे जिसने भी बिछाये जब वो मेरे पांव में चुभे और जोर से चीखा मैं दर्द से जरूर उनके कानो के परदे भी हिले होंगे और दुख रहे होंगे अभी तक दोस्त मेरा घाव शायद जल्दी भर जायेगा क्योकी बेजान कांटे से हुआ है पर तुम्हारा नहीं भर पायेगा जल्दी क्योकि इंसानी चीख से घायल हुए हो तुम । इंसान की जब भी निकलती है चीख या कराह वो छलनी कर देती है अंदर तक और दीखती भी नहीं पर अचेतन में हथौड़े के तरह चोट करती रहती है जिंदगी भर ।


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