पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
बुधवार, 16 सितंबर 2015
मेरी राहो में कांटे जिसने भी बिछाये जब वो मेरे पांव में चुभे और जोर से चीखा मैं दर्द से जरूर उनके कानो के परदे भी हिले होंगे और दुख रहे होंगे अभी तक दोस्त मेरा घाव शायद जल्दी भर जायेगा क्योकी बेजान कांटे से हुआ है पर तुम्हारा नहीं भर पायेगा जल्दी क्योकि इंसानी चीख से घायल हुए हो तुम । इंसान की जब भी निकलती है चीख या कराह वो छलनी कर देती है अंदर तक और दीखती भी नहीं पर अचेतन में हथौड़े के तरह चोट करती रहती है जिंदगी भर ।
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