गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

ये समंदर का किनारा

ये समंदर का किनारा
रेत है और कुछ नहीं
और
पानी हां पानी भी बहुत है
प्यास है खूब प्यास
पर पी सकते नहीं है ।
किस लिए फिर
इसकी चाहत
क्या मिलेगा
इन लहरों को गिनकर
या
इनसे टकरा कर
क्या मिलता है
इस रेत से दिल लगाकर
क्यों जाते है हम
इतनी दूर दूर
बस ये रेत देखने
लहरे गिनने
या
लहरों में गिर जाने को
मुझको तो
कुछ समझ न आया
सब माया है केवल माया ।
ये किनारा ,ये लहरे औ ये पानी
जो खारा है
आखो के पानी से भी क्या
ये बालू कितनी निर्मम है
मेरे जीवन से भी क्या ।
ये समन्दर का किनारा
रेत है और कुछ नहीं ।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें