शनिवार, 22 अप्रैल 2017

कभी समन्दर के किनारे

कभी
समन्दर के किनारे
खड़े होकर
दूर देखा है आप ने
लगता है कि
कुछ ही दूर पर
आसमान मिल रहा है
समन्दर से
पर जब आगे बढ़ते है
नाव से या जहाज से
तो वो मिलन
और दूर चला जाता है
वैसी ही होती है
कुछ जिंदगियां
और कुछ के भविष्य
इच्छाये ,खुशियाँ और आशाएं ।
मैं भी
ताक रहा हूँ टुकुर टुकुर
दूर से दूर तक
बहुत दिनों से
और भाग रहा हूँ लगातार
की आसमान को छू लूँ  ।
पर
या तो आसमान छल करता है
या
मेरा पुरुषार्थ ही जवाब दे जाता है
और
हाथ भी तो छोटे पड़ जाते है मेरे ।

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