बुधवार, 10 मई 2017

पहले भी नवाबो और राजाओं की रक्काशा और गणिकाएँ होती थी

पहले भी नवाबो और राजाओं की
रक्काशा और गणिकाएँ होती थी
पर उनकी भी कुछ सीमाएं होती थी
आज की राजनीति में
सिर्फ रक्काशा और गणिकाएँ होती है
उसकी कुछ भी सीमाएं नही होती है ।
तब के राजा अपना काम खत्म कर महफ़िल जमाते थे
आज के हर वक्त सिर्फ काम की महफ़िल जमाते है
तबके राजा आमसभा से अलग पर्दे में हरम बनाते थे
आज के आमसभा को ही हरम बना देते है
तब कोई खासियत होती थी गणिका और रक्काशा बनने की
आज बस औरत जो जाना ही काफी है
तब गणिका और रक्काशा भी कर्मच्युत नही होने देती थी ज्यादातर
अब कर्म लायक ही नही रहने देती है
तब की गणिकाओं ने युद्ध भी लड़े और जौहर भी किये
अब के राजाओं में गणिकाओं के लिए युद्ध हो रहे और कर्मो का जौहर भी ।
हा बहुत फर्क हो गया है समय के साथ आदत और अंदाज़ में
बड़े से बड़े राजा के यहां आप का हुनर और बेबसी दोनों मार खा जाएंगे
फिर जरा हुस्न को आजमाइए जब तीर निशाने पर ही जायेंगे ।
हमसे कहते है हमारी इज्जत करो और जय जय कार करो
हा और तुम अस्मत ,दौलत और सत्ता का केवल और केवल व्यापार करो ।
वैसे जिनकी अजेय और व्यापक सत्ताएं थी और बड़े बड़े हरम थे उनके भी निशा  कहा है
फिर आज वाले तो लोकतन्त्र के जमूरे है
इनकी निशानी भी कहा होगी ।
गणिका से गणिका तक ही पूरा हो जायेगा सफर पूरा जिन्दगी का ।

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