पेड़ से टूटता है पत्ता
उड़ता है इधर से उधर
गिरता है जमीन पर
हरा होता है
तो
कोई जानवर खा जाता है
सूख जाता है
तो
रौद दिया जाता है पैरो से
और
मिट्टी मे मिल जाता है
पेड़ से टूटती है डाल
सूख जाती है कुछ दिन मे
पतली होती है
या कमजोर होती है
तो जला दी जाती है
मजबूत भी होती है
तो भी काट दी जाती है
बना दी जाती है
कुछ न कुछ
किसी के बैठने को
या
सजावट की चीज बन जाती है
घर से भागने वालो
और
इस पत्ते या डाल मे
क्या फर्क होता है
कुछ भी नही न ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
बुधवार, 20 मार्च 2019
पेड़ से टूटता है पत्ता
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