उन्होने पढाया था
हज़ारो को
इसलिये बस गये थे
उसी शहर मे
और
उनकी कविताओ पर
कितनी तालिया बजती थी
और
उनके भाषण
लगता था क्रांती कर देंगे
और
वो कितना अच्छा अभिनय
करता था / करती थी
किसी ने नही देखा
उसके दरवाजे की तरफ कभी
जब वो वो नही रहे
जब बदबू परेशान करने लगी
तब पडोसी परेशान हुये
और
शिकायत किया पुलिस को
तब दरवाजा तोड
निकाला गया कई दिन की
सडी लाश को
उस दिन लोगो ने भी कहा
और अखबार ने भी लिखा
कि
ये वो थे / थी
ऐसे थे और वैसे थे
और
लग गयी गिद्ध निगाहे
उनके घर पर ।
कितनी कहानियां
पसरी पडी है चारो ओर ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
बुधवार, 20 मार्च 2019
वो जब वो नही रहे
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