कितना बुद्धू था वो कि सपना देखता था
और सपने मे सबको अपना देखता था
उसे पता नही था कि सपने तो सपने होते है
वो तो सोने मे कल्पनाओ की उड़ान होते है
जागने पर वो कब अपने होते है
ये सपने क्या से क्या बनाते है और कहा ले जाते है
पर जब टूटते है तो किस कदर रुलाते है
इसलिये छोडो सोते हुये सपने मत देखो
हा देखो खुली आंखो से देखो खूब देखो
हकीकत के आसपास देखो
और हकीकत कभी धोखा नही देती
न सपनो का न अपनो का
अपनो की छोडो उस सपनो के पीछे लग जाओ
जो तुम्हे बुलंदी पर ले जाते हो
और तमाम तुमसे नफरत करने वालो को भी तुम्हारा अपना बनाते हो
आप सपना सपना खेले
बनाये सपनो के लिए बुनियाद
और अपनी इमारत बुलंद करने को चाहे जो झेले
पर बुलंदी पर पहुच कर मेहनत और लगन के सफलता का झन्डा फहराए
और ऐसे जंम जाये की फिर नीचे उतर कर न आये ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
गुरुवार, 18 जुलाई 2019
सपने देखता है
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