एक जंग जारी है
अन्दर भी बाहर भी
जब हम सुख भोग रहे होते है
तन्मयता से
अधिकार और गौरव के नशे के साथ
उस वक्त हम
रंचमात्र भी नही महसूसते है
की
उसी वक्त तैयार हो रहा होता है
किसी दुःख का अनचाहा शिलालेख
उस शिलालेख को देखते है हम अचानक
तब
ऐसा लगता है सुन्दर स्वप्न देखते देखते
खतरनाक सांप ने जीभ से हमें छू लिया
दुःख और विषाद जब हमें तोड़ रहा होता है
और लगता है की हम जंग हार गए है
अपने ही अस्तित्व को
स्वीकारने को तैयार नही होते है हम
उस वक्त भी हमें सबक देकर
तैयार हो रहा होता है
एक स्वर्णिम भविष्य का सूरज
वह हमें ललकार रहा होता है
उठ खड़े होने कोऔर कह रह होता है
की यह पास में ही मै हू
आओ मुझे छू लो ,चाहो तों पा लो
अपनी सामर्थ्य भर,अपनी उत्कंठा भर,
अपने पुरसार्थ भर
मै स्वय तों हू इस कथानक का पात्र
एक जंग के साथ ,
जो भीतर भी है और बाहर भी
की कुछ छण के सुखद सूर्य को
कैसे और कितना सहेजू
और
किस तरह बिना सहमे और ठिठके
पार कर जाऊ अन्धेरेपन को
यह जंग लगातार जारी है ,
अन्दर भी और बाहर भी
और
मै सामने दीवार पार लिखा
गीता सन्देश वाला चित्र देखकर
कलम रख देता हूँ
और
मजबूत कदमो से चल पड़ता हूँ .
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