कुछ लोगो को
कितने लम्बे समय तक कितनी तकलीफ़ो के साथ
कितना कुछ करना पड़ता है
एक छोटा सा अपना घर बनाने के लिए ।
फिर एक दिन पता चलता है
की
ये तो सिर्फ ईंट गारे की बेजान दीवारे और छत है ।
क्योकी
घर तो घर वालो से होता है ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें