मंगलवार, 18 अगस्त 2020

चिट्ठियाँ

जी हाँ 

पहले चिट्ठियां होती थी

सूचना

और

सुख दुःख जानने का साधन

चिट्ठियां भी कई तरह की होती थी

इतना खुला था हमारा जीवन

और हमारा समाज

कि

खुले पोस्ट कार्ड पर

सब कुछ लिख कर भेज देते थे लोग

किसी से कोई धोखा नहीं होता था

क्योकि ये सस्ता होता था

पैसा नहीं होता था लोगो के पास

बस भावनाए और जुडाव होता था

एक चिट्ठी ऐसी भी होती थी

जिस पर टिकेट नहीं लगा होता था

वो भेजने वाले तीन तरह ले लोग होते थे

या तो गरीब रिश्तेदार

या दूर पढ़ रहे छात्र

या फिर वो जो चाहते थे

कि

चिट्ठी हर हालत में मिल जाये उसे

जिसके लिए भेजा है

क्योकि डाक टिकेट का पैसा

उसी से लेना होता था

इसलिए डाकिये की मजबूरी थी

पाने वाले के हाथ में चिट्ठी देना

अंतर्देशीय भी था जो बंद रहता था

पर थोडा महंगा

इसलिए या तो

उसका खर्च वहनं कर कर सकने वाले

लिखते थे इसमें

या फिर कोई गोपनीय बात होने पर

लिखा जाता था ये पत्र

गाँव में तो डाकघर और डाकिया

दोनों वही के होते थे

पर कोई नही झांकता था

किसी के पत्र में

किसी का पत्र तभी पढता था

जब वो खुद पढने को कहता था

रजिस्टर्ड  डाक तो

खैर विरले ही भेजते थे

खास कारणों से

चिट्ठिया भी तरह तरह की होती थी

किसी के कोने पर थोड़ी सी हल्दी का रंग

तो किसी पर लाल रंग

हल्दी किसी शुभ सूचना के लिए

तो लाल रंग

आशिक के दुःख की निशानी था

और ये बताने की कोशिश

की ये खून से लिखा है

गाँव की चिट्ठियों में

सबके हालचाल पूरे गाँव सहित के साथ

गाय बैल उसकी बीमारी

जो बीमार था ठीक हुआ या नहीं

फला गाय या भैस दूध दे रही या नहीं

और कितना दूध दे रही है

कौन कौन पीता है दूध

बाबा भी पीते है या नहीं

और जिसको बच्चा होना है

उसे मिलता है या नहीं

बगीचे का क्या हाल है

कौन कौन सा फल कितना लगा है

किस किस खेत की जुताई हो गयी

किस खेत में पानी लग गया

धन रोपा गया या नहीं

और 

कौन सी फसल कितनी होगी

इत्यादि जरूर होता था

कोई बीमार था गाँव में तो क्या हुआ

किसका इलाज हो रहा है

और मर गया तो कैसे

और

सब सुख दुःख बताने के बाद

और

ये बताने के बाद की फला फला मर गए

सुखा पड़ गया या बाढ़ में सब बह गया

भैस या गाय मर गयी

वो बच्चा पैदा होते ही मर गया

अंत में ये जरूर लिखा होता था

अपना ध्यान रखना 

यहाँ बाकि सब कुछ ठीक ठाक है

पति पत्नी की चिट्ठिया गोपनीय होती थी

इसलिए उनका ब्यौरा भी लिखना ठीक नहीं

सारे आशिक अंत में जरूर लिखते थे

लिखा है ख़त खून से स्याही न समझाना

शहर की चिट्ठिया इतनी मजेदार नहीं होती थी

इसलिए उन पर भी क्या लिखना

हां तार भी होता था

जो बहुत ही भयानक होता था

तार आने का मतलब ही होता था

की कोई जरूर मर गया

तार खोलते वक्त पढने से पहले ही

रोना धोना शुरू हो जाता था घर में

चाहे किसी ख़ुशी को जल्दी से बताने को

भेज दिया हो किसी अपने ने

तार आने की खबर पूरे गाँव में

और

उस समय के शहरी मुहल्लों में भी

बहुत जल्दी फ़ैल जाती थी

और 

लोग मुह लटकाए आने लगते थे

दुःख बांटने

चिट्ठिया सहेज कर राखी जाती थी

किसी कोने में या किसी संदूक में

एक और रिवाज था

चिट्ठी आने पर

पूरे परिवार को इकट्ठा कर पढने का

पढना भी तो 

गाँव में कोई कोई ही जानता था

वही सबकी चिट्ठी बांचता था

अगर दूर रह रहे पति की चिट्ठी

पत्नी के लिए होती थी

तो 

कुछ पढ़ कर कुछ छोड़ देता था

और कह देता था

की बाकी  बात

वो अपनी मेहरारू को बता देगा

और वो आकर बता देगी

तब कुछ ऐसी ही मर्यादाये होती थी

कोई दुःख का समाचार

चिट्ठी बांचने वाले की अचानक

हिलते हुए ओठो और आँखों से

ही पता लग जाता था

क्योकि कुछ पल वो चुप हो जाता था

दुःख दूसरे का था पर सब रोते थे

जसे

पहले लड़की किसी की भी विदा होती थी

पर रोता पूरा गाँव था

फिर रोना पूरा कर वो बांचता था चिट्ठी

कुछ चिट्ठिया 

छुपा कर भी रख देने का रिवाज था

कुछ घर में षड़यंत्र के कारण

और 

कुछ हंसी ठिठोली के लिए

इतिहास में तो चिट्ठियों ने

बड़ी बड़ी क्रांतियाँ करवाई है

तो ज्ञान का प्रसार की किया है

बहुत से जाने मने लोगो की चिट्ठिया

तो आज तक रौशनी का काम करती है

अगर प्रकाशित हो गयी है

या पाण्डुलिपि के तौर पर मौजूद है

क्या होता था जब कोई अपना

कही चला जाता था

तो रोज डाकिये का इन्तजार करना

और

अकसर डाकघर तक चले जाना

पूछने के लिए

की

हमारी कोई डाक है क्या

मिल गयी तो नेमत पाने की ख़ुशी

और नहीं तो उदास होकर लौटना

कितना रोमांच था जिंदगी में

बहुत सी चिट्ठिया

असली भावना का प्रवाह होती थी

मन भी भीग जाता था और भावनाए भी

मेरे पास भी है

सहेज कर रखी हुयी कुछ चिट्ठिया

एक अपने पिता की आखिरी चिट्ठी

और कुछ अपने हमसफ़र की

जिन्हें मैं अक्सर पढता हूँ

अक्श उभर आते है हमेशा उनके

जब भी वो चिट्ठियां पढता हूँ

तो काफी दिन का  दर्द

आँखों के रास्ते बह जाता है

जी हाँ चिट्ठिया क्या होती थी

आज के लोग क्या जाने

और क्या जाने

उनके आने के इन्तजार का मज़ा 

और

उनको बार बार पढने

तथा सहेजने का मज़ा

हो सके तो चिट्ठिया लिखिए

और 

नयी पीढ़ी को लिखना सीखाइए

मोबाइल और फोन अपनी जगह है

और चिट्ठिया अपनी जगह

वाह रे चिट्ठियां

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