मंगलवार, 18 अगस्त 2020

जब लगा था मेरे घर फ़ोन

जब लगा था मेरे घर नया नया फोन

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एक दिन फोन मंत्री मिल गए

और पूछ लिया घर में फोन है

लागा जैसे कुछ अपराध या हीनता है

घर में फोन नहीं होना

बहुत मुश्किल से मुह से निकला था

नहीं हम कैसे रख सकते है फोन

हम तो साधारण आदमी है 

कहा से देंगे उसका पैसा 

उन्होंने जारी कर दिया एक आदेश

एक कमिटी का सदस्य बनाने का

और जब आयी थी उसकी चिट्ठी 

क्या ख़ुशी थी 

जैसे कितना बड़ा कुछ मिल गया 

पिता जी ने 

कई लोगो को जाकर बताया था 

उसके बारे 

कुछ दिन में लग गया वो लाल रंग का फोन

ये भी उन दिनों खबर थी अख़बार के लिए

जानने वालो और आसपास के मुहल्ले के लिए

मिलने लगी बधाइयाँ और मांगे जाने लगे नंबर

अपने फोन तो शायद ही कभी आते हो

क्योकि अपनों के पास नहीं थे फोन

पर जब पहली बार घंटी बजी 

तो सभी अजीब कशमकश में थे की क्या करे 

पिता जी ने आगे बढ़कर उठाया था चोगा 

बस इतना ही पुछा था कौन साहब है आप 

किसी अपने का फोन था 

पूरा परिवार देख रहा था गर्व से 

किसी आश्चर्यजनक चीज की तरह 

मैंने जब पहली बार उठाया था 

तो उठाने से पहले रटता रहा की हेल्लो कहना है 

पर दूसरो के तमाम फोन आने लगे

और बढ़ गयी थी रौनक घर में

कुछ दिन तो गर्व की अनुभुती होती रही 

पर फिर मुसीबत बन गया फोन 

जब किसी ने बाहर का फोन मिला दिया 

और आ गया बड़ा सा बिल 

उस ज़माने के हिसाब से 

तब ध्यान रखना पड़ता था 

की सभी काल को लाक करके रखना है 

पर 

लोगो के फोन का कोई समय ही नहीं था 

अपनी जिंदगी ही अपनी नहीं रह गयी 

सुबह से रात तक कोई न कोई 

आकार इन्तजार करता था अपने फोन का 

खाना पीना भी मुश्ल्किल 

और अपनी बात करना भी मुश्किल 

जी हा फोन 

मुसीबत का सबब भी था तब फोन  

पर स्टेटस का सिम्बल था 

तो सब कुछ बर्दाश्त करते थे लोग

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