बन्दूके भी अब खुद को छलने लगी है
गोलिया अब पैरो मे लगने लगी है ।
वो बदमाश गायब था लापता था
इनाम बढते ही शिनाख्त मिलने लगी है
इनाम इकराम मिला जान बची दोनो खुश
ये रिश्तों की गर्मी पिघलने लगी है ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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