शनिवार, 27 मार्च 2021

इन्सान हो तो उट्ठो

चलो हँसते है 
अपनी बेबसी पर 
किसी की सिसकियो पर 
चलो हसते है 
किसी की मौत पर 
किसी की बर्बादियो पर 
चलो हसते है 
उस बेटी की लूटी आबरू  पर 
उस माँ के गये सहारे पर 
चलो हँसते है 
उस बेवा के रूदन पर 
बहन की सूनी कलाई पर 
चली हसते है 
पथराई आंखो पर पिता की 
बच्चों के अंधरे मुस्तकबिल पर 
क्योकी हंसना ही जिंदगी है ।
यही गर फ़लसफ़ा है जिंदगी का 
तो ऐसे फलसफे को गर्त कर दो 
उठ सको तो उठो 
चल सको तो चलो 
वर्ना बस हुंकार भरो 
हर बेबसी और हर रूदन पर 
हर जुल्म पर जो ढाये जा रहे हो 
और 
हर कफन पर 
जो यूँ ही पहनाए जा रहे है ।
अगर इन्सान हो तो उट्ठो 
हर गली से हर खेत 
और खलिहान से उट्ठो 
और चल पडो 
जुल्म खुद ब खुद मिट जायेगा
अंधेरा खुद ब खुद छट जायेगा 
सूरज खुद ही मुस्करायेगा ।
(अभी बन गयी कविता ) किसी का भी संशोधन मान्य ।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें