सोमवार, 23 अगस्त 2021

चुपचाप ऐसे ही चला जाऊंगा

मैं मर भी जाऊं तो क्या होगा 
शायद अगर हुआ तो 
चार कंधे 
कुछ लकड़ियाँ
और आग के शोले 
कुछ क्षण की 
कुछ सिसकियाँ 
कुछ कहानिया 
कुछ शिकायतें 
कुछ झूठी अच्छाइयां 
बहुत सी बुराइयाँ 
क्या किया जीवन में 
बेकार था कुछ न किया 
जिम्मेदारियां भी छोड़ गया 
नालायक था कुछ नहीं किया 
बार बार बोर होकर भी 
दोहराई जाती वही कहानियां 
उठावनी हो गयी
घर वालो का बोझ कुछ कम हुआ 
लो तेरही भी आ गयी 
ये भी खर्च कवाएगी 
कोई रिश्तेदार रुक न जाये 
चलो सब चले गए 
अब देखो कहां क्या क्या है 
बाट लो किसका क्या है 
और 
चल पड़ेगी जिंदगी 
अपने अपने रस्ते पर 
एक कोने में टंगी तस्वीर 
साल में एक बार शायद 
बदलेगी माला 
और हाथ जोड़ कर भागते हुए लोग 
आज तो देर हो गयी इस चक्कर में 
पता नहीं क्यों बने है ये रिवाज 
इसलिए 
मेरे लिए मेरी वसीयत है 
की 
कोई नहीं रोयेगा 
बिजली में जला देना मुझे 
किसी नदी में नहीं बहाना मुझे 
मैं नहीं मानता कोई पूजा इसलिए 
न कोई पूजा और न उठावनी तेरही 
अगले ही पल से सब खुश रहो
और अपनी जिंदगी जियो 
मेरे लिए न कभी कोई पारेशान हुआ 
न किसी को होना है 
वर्ना मैं परेशान हो जाऊंगा 
कुछ नहीं है मेरे पास
की कोई लडे की किसका क्या 
बस मेरी यादे कभी क्रोध लायेंगी
की नालायक बाप ने कुछ नहीं किया 
यही मेरी वसीयत है ।
मैं चला जाऊंगा तो भी 
कुछ नहीं होगा 
सब जैसे था वैसे ही चलेगा ।
बस मेरा आशीर्वाद ही मेरी वसीयत है 
जो किसी काम नही आएगी 
इसलिए मैं रहूँ या न रहूँ 
कोई फर्क नहीं पड़ता 
दुनिया ऐसे ही चलती है ।
और मैं भी चुपचाप ऐसे ही चला जाऊंगा 
शायद लावारिश होकर 
की किसी को कोई कष्ट ही न हो ।

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