गुरुवार, 12 जनवरी 2023

आदमी या पिट्ठू

निकल पडते है 
सुबह ही पिटठू टागे 
न जाने कितने लोग 
कन्धे झुके पीठ झुकी 
चेहरा सपाट भावहीन 
पिटठू मे ही होता है 
उनका पूरा ऑफिस 
उनका टिफिन 
और पानी 
उनके अरमान
उनका भविष्य 
उनकी जवाबदेही 
घर से बाहर तक की
कही पैदल 
तो 
कही साइकिल पर 
कही बाइक पर 
तो कही बस मे 
कही लोकल मे 
कभी 
इन्हे गौर से निहारो 
क्या ये आप के अपनो जैसे ही है 
कभी 
इन्हे प्यार से पुकारो 
क्या ये सुन पाते है आवाज 
या बस भाग रहे है 
जिन्दगी की जद्दो-जहद मे 
मजदूर भी हंस लेता है पर ये नही 
मजदूर गा लेता है 
पर ये नही 
मजदूर अपने मन से भी जी लेता है 
पर ये नही 
कौन है ये लोग 
जिनकी पीठ पर 
लाद दिया है भारी बोझ 
नई अर्थव्यवस्था ने 
नई पढाई ने 
और 
आज के परिवारो ने 
बस किसी तरह 
इतना तो कमा लो 
कि 
शाम को लौट कर 
दो रोटी खिला दो 
और खुद भी खा लो 
इनकी पहचान क्या है 
ये आदमी है या पिटठू ?

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