मैं भी चाहता था कुलांचे भरना
हिरन बन कर
पर वक्त का शेर खा गया
बहुत कोशिश की उड़ने की
पंख लगा पक्षी बन कर
पर
बाज झपट पड़े हर बार
फिर कोशिश की चलने की
अपने पैरो से अपने पुरषार्थ भर
पर
खाईयां खोद दी गई
और
बार बार उसमे लोगो ने गिरा दिया
अब
हमने भी नियति के चौखट पर
सर अपना रख दिया है ।
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