बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

नियति के चौखट पर

मैं भी चाहता था कुलांचे भरना 
हिरन बन कर 
पर वक्त का शेर खा गया 
बहुत कोशिश की उड़ने की 
पंख लगा पक्षी बन कर 
पर 
बाज झपट पड़े हर बार 
फिर कोशिश की चलने की 
अपने पैरो से अपने पुरषार्थ भर 
पर 
खाईयां खोद दी गई 
और 
बार बार उसमे लोगो ने गिरा दिया 
अब 
हमने भी नियति के चौखट पर 
सर अपना रख दिया है ।

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