पहले नेता विचार फैलाते थे
फिर
नेता वैचारिक संगठन बनाते थे ।
फिर नेता संगठन बनाने लगे
जाती और धर्म आधारित ।
और
अब नेता भेड़ो के झुण्ड बनाने लगे
उनकी आवाज को विचार
और
उनकी रेवड़ को दल कहने लगे हैं ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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