शनिवार, 16 दिसंबर 2023

बस घिसट रहा हूँअपनी लाश लिए

मैं ढूंढ रहा हूँ खुद को

कुछ दिनों से 

पर भटक जाता हूँ

रास्ता तलाश करते करते

केवल अँधेरा हाथ आया है 

अब तक

अँधेरे में रास्ता नहीं दीखता

तो कैसे ढूंढ मैं खुद को

रास्ता तलाश करते करते

कितनी बार गिरा मैं

और कितनी बार टकराया हूँ

पता नहीं किस किस चीज से

सर फूट गया है टकरा कर

बह रहा है खून लगातार

केवल सर क्यों ,यहाँ तो

अंग अंग घायल हो गया है

और 

दिल तो छलनी हो गया है

मन और अस्तित्व 

विलीन हो गए है

कही अनंत में

और मैं ,

मैं हूँ ही कहा

मुझे तो ख़त्म कर दिया है

संघर्ष और क़िस्मत की जंग ने 

तो क्या ढूँढना खुद को

बस घिसट रहा हूँ

अपनी लाश लिए 

अब 

अपनी लाश के बोझ ने भी 

थका दिया है बुरी तरह

नहीं चल पाउँगा और 

अपने पैरो पर 

पर कोई कंधे भी तो नहीं

जिनका सहरा मिल जाये 

या 

जिनपर लद कर जाऊं मैं ।

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