वो अपने आप पर हँसता है मुस्कराता है
तभी एक पत्थर उसकी तरफ को आता है|.
जमी पर उतरा है तब से ही बड़ा घायल है
लोगो के दिए गमो को पका कर खाता है |.
उसको भी आसमा को छूने की चाहत थी
जमी पर घायल है पंखो को फडफड़ाता है |
अपने पांव पर चलने की बड़ी कोशिश की
मिली अपनों से चोट तों वो लडखडाता है |
क्या बात, उसे मंजिल कभी नहीं मिलती
खुदा भी उस पर क्यों नहीं तरस खाता है |
खुदा ने उसको नहीं अपना करम माना है
तभी तों उसके करम मिट्टी में मिलता है |
वो डाकिया जो सबको ही चिठ्ठियाँ देता
उसके घर के सामने से निकाल जाता है |
मंजिल जब कभी होती है पास आने को
उसे फिर कोई गलत पते पर ले जाता है |
वो भी सूरज को माथे पर टांक सकता था
आज उसका दिया भी तों टिमटिमाता है |
वो चाहता तों समंदर में डूब सकता था
पर फिसलनो पर वो ना फिसल पाता है |
जिसके लिए भी अपने को दांव पर रखा
वो ही हर बार गलत रास्ता दिखलाता है |
वो अपनी जिंदगी का हश्र देख कर हँसता
जमाना भी दांतों तले उंगलियाँ दबाता है |
ये जिंदगी है यारो जीना है इसे मस्ती से
फांकेमस्ती में भी मस्ती से गुनगुनाता है|
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