शनिवार, 14 अगस्त 2010

वो अपने आप पर हंसता है मुस्कराता है

वो अपने आप पर हँसता है  मुस्कराता है
तभी एक पत्थर उसकी तरफ को आता है|
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जमी पर उतरा है तब से ही बड़ा घायल है
लोगो के दिए गमो को पका कर खाता है |.

उसको भी आसमा को छूने की चाहत थी
जमी पर घायल है पंखो को फडफड़ाता है |

अपने पांव पर चलने की बड़ी कोशिश की
मिली अपनों से चोट तों वो लडखडाता है |

क्या बात, उसे मंजिल कभी नहीं मिलती 
खुदा भी उस पर क्यों  नहीं तरस खाता है |

खुदा ने उसको नहीं अपना करम माना है
तभी तों उसके करम मिट्टी में मिलता है |

वो डाकिया जो सबको ही चिठ्ठियाँ देता
उसके घर के सामने से निकाल जाता है |

मंजिल जब कभी होती है पास आने को
उसे फिर कोई गलत पते पर ले जाता है |

वो भी सूरज को माथे पर टांक सकता था 
आज उसका दिया भी तों टिमटिमाता है |

वो चाहता  तों समंदर  में डूब सकता था  
पर फिसलनो पर  वो ना फिसल पाता है |
 
जिसके लिए भी अपने को दांव पर रखा
वो ही हर बार गलत रास्ता दिखलाता है |

वो अपनी जिंदगी का हश्र देख कर हँसता 
जमाना भी  दांतों तले उंगलियाँ दबाता है |

ये जिंदगी है यारो  जीना है इसे मस्ती से
फांकेमस्ती में भी मस्ती से गुनगुनाता है|

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