शनिवार, 14 अगस्त 2010

में एक और अभिमन्यु

मै
एक और अभिमन्यू!
जीवन के चक्रव्यूह में 
फस गया हूँ
मेरे चारो तरफ
चक्रव्यूह का 
निर्माण करने वाले भी 
मेरे ही है
हाँ, अभिमन्यू की भाति 
मेरे अति निकट के लोगो ने
मेरा शिकार करने के 
सारे जतन कर लिए है
मै लगातार संकोच में हूँ की
इनमे से 
किस पर हथियार उठाऊ
मेरा द्वन्द और भावनाएं 
मुझे रोक रहे है
हथियार उठाने से
परन्तु शिकार कितना ही 
कमजोर क्यों ना हो
और 
घेरने वाले कितने ही बलशाली
मौत सामने देख 
स्वस्फूर्त युद्ध शुरू हो ही जाता है
मै भी चक्रव्यूह से निकलने की 
कोशिश कर रहा हूँ
लड़कर चक्र पर चक्र 
पार करता जा रहा हूँ
पितामह को प्रणाम कर
उनका रथ पीछे धकेल दिया है
लेकिन 
नियति से लड़ने की कला
कोई अभिमन्यू नहीं जानता
लड़ाई जारी है 
और 
चक्रव्यूह पूरे कसाव पर है
और 
मै एक और अभिमन्यू 
चक्रव्यूह में संघर्षरत
संघर्ष और चक्रव्यूह का अंत
ना पांडव को,
ना कौरव को पता है
और 
अभिमन्यू को भी 
पता नहीं होता है .

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