रविवार, 22 अगस्त 2010

तुम कहा थे जब उन्हें फंसी के फंदे पर लटकाया गया ( जून १९७1 )

तुम कहा थे                                                              
उस दिन
जब उन तीनो को
बेडियो में ले जाया गया
उन तीनो को
फांसी के फंदे पर चढ़ाया गया
फांसी पर चढ़ने वाले
तुम क्यों नही थे
उस दिन
जब साइमन हाय हाय का
नारा लग रहा था
लाजपत गरजे ,डंडे पड़े ,
वो शहीद हो गए
वह डंडा तुमने नही खाया उस,
मौत को तुमने नही अपनाया 
उस दिन
जब जलियांवाला बाग़ में
गोलियां चल रही थी
मौत जिंदगी को छल रही थी
उस दिन कोई नही बचा
तुम हमेशा कैसे बच गए
जबकि तुम तों हमेशा लक्ष्य पर होते थे,
क्योकि मंच पर होते थे
उस दिन
जब वह सिंगापुर से चल कर
भारत की भूमि पर आया था
उसने भारत भूमि पर झंडा लहराया था
तुमने साथ नही दिया था
केवल मुकदमा लड़ कर
कर्तव्य पूरा कर दिया था
उस दिन
जब तुम जैसे ही गद्दार की गद्दारी पर ,
गद्दार पुलिस वालो ने
उसे अल्फ्रेंड पार्क में घेर कर गोली मारी थी
उसकी जगह तुम क्यों नही मरे थे
क्योकि तुम्हारी गोरो से यारी थी
तुम उनकी सत्ता को और आगे बढ़ा रहे थे
ना अस्त होने वाले सूरज को
और ऊपर चढ़ा रहे थे
क्यों अहिंसा की बात कर
लोगो को चलती गोलियों में छोड़
तुम पुलिस वैन में घुस जाते थे
होई थी हिंसा, आती थी मौत,
तुम नजर नही आते थे 
क्यों मिला औरो को नरक और
तुमको ए क्लास जेल की कोठरियां
औरो को गुमनामी ,तुमको सत्ता
औरो को भूख तुमको कुर्सी सुविधाएँ
तरह तरह का भत्ता
क्योकि तुम गद्दार थे गोरो के यार थे
तुम कौन होते हो हमें देशद्रोही बताने वाले
हमारे ही संविधान द्वारा
हम पर लाठी और गोली चलाने वाले
तुम्हारा चेहरा साफ नजर आने लगा है
तुम्हारी लफ्फाजी और कोरे भाषणों का
रहस्य समझ में आने लगा है
भूख ,बेकारी और गरीबी की दुहाई देकर
कुर्सी का खेल खेलने का नाटक और नही चलेगा
अब
भूखा मजदूर ,नंगा किसान जाग रहा है
इनका सम्मिलित तूफानी स्वर जागेगा
इनके स्वर में लफ्फाजी नही होगी ,
नारेबाजी नही होगी
अगर होगा तों शहीदी रक्त होगा ,
मचलती आग होगी
जिसमे जल कर
तुम्हारे सारे कुत्सित हथकंडे भष्म हो जायेंगे
ये करोडो इन्सान जिनसे मिल कर बना है
देश हिदुस्तान
अपनी सच्ची आजादी का जश्न मनायेंगे .

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