शनिवार, 28 अगस्त 2010

हलाल से मरा या झटके से मौत उसकी

एक मौत हो गयी है हर तरफ बहस है
हलाल से मरा या झटके से मौत उसकी
एक पक्ष कह रहा है हलाल में है जन्नत
स्वर्ग झटके में है एक पक्ष का है ये मत
गुस्से में  आकर दोनों बाहें चढ़ा रहे है
वो  कुरान पढ़ रहा है वो वेद गा रहे है
सच में कोई मरा है या चल रही है सासे
यदि चल रही है सांसे कोई उसे बचाए
पर बहस फिर वही कि कौन उसे बचाए
हिन्दू है या मुसलमा पहले वो ये  बताये
इन्सान होना इंसा को काफी नहीं है  यारो
गैर मजहबी बचाया तो माफ़ी नहो है यारो
उसकी जिंदगी से है किसका कोई  वास्ता
विवादों से खुलता है राजनीति का रास्ता
दोनों ने कहा अफवाह फ़ैलाने में भला है
अजमाया हुआ नुस्खा हर बार जो चला है
छोड़ो इसे अपनी अपनी बस्ती में लौट जाओ
मै गोली इधर  चलाऊ तुम भी उधर  चलाओ
पर पहले देख लेना घर वाले घर पे ही हो
या इंतजार करना थोड़ी देर क्यों नहीं हो
जब दोनों बता देंगे सब ठीक है जी मौला
तुम भी करना दंगा ,हम भी करेंगे दंगा
कुछ मर गए तो फिर सियासत में रंग होगा    
हम दोनों के लड़ने का पुराना ही ढंग होगा   
तुम बनो विधायक और संसदी हो मेरी
प्रान्त में सत्ता तेरी औ दिल्ली में हो मेरी
फिर बात होगी कि   कौन  मर गया था
वो अफवाह थी या सच में कोई मरा था
सचमुच कोई मरा हो तो दोनों रो लेंगे
जनता का ही  है पैसा मुवावजे  में देंगे
पाँच साल के लिए अब हो गयी कमाई
चाहे  कहे  कोई नेता चाहे  कहे कसाई
खेल राजनीति का पता चल गया है साथी
हम लड़ते रहे  जमाना छल गया है साथी
वो    हिन्दू मरेगा या  मुस्लमान  मरेगा 
लेकिन कोई ना कोई  तों  इन्सान मरेगा
हम लड़ते रह गए  तों यारो  याद  रखना
एक दिन होगा पूरा ही हिंदुस्तान मरेगा

2 टिप्‍पणियां :

  1. अरे भाई साहब , मर तो भारत की जनता रही है. हलाल और झटका दोनों तरह भारतमाता कट रही है. सबको नरक जाना है.उत्तम व्यंग्य पर बधाई.

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