शनिवार, 14 अगस्त 2010

उस दिन सुबह गिर गया एक टुकड़ा

उस दिन सुबह सुबह गिर गया
अचानक अपना एक टुकड़ा
ठंडे हाथ ,ठंडे पांव ,निढाल सब कुछ
चार साथ थे, चारो साथ साथ ठंडे पड़ते जा रहे थे
तभी चारो की गर्मी ने टुकड़े में हरकत पैदा किया
खिल गए चारो चेहरे अज्ञात भय के साथ साथ
जब किसी ने कहा की नश्तर चीरेगा टुकड़े को
ज्वालामुखी फट पड़ा था मन के भीतर
कितना मुश्किल से कस कर रोका था उसे
परन्तु उसकी तपन की कालिमा चहरे पर आ ही गई
चेहरा पढ़ लेने का डर भी कौंधा था
चारो अस्थिर है मन से, शरीर से ,आत्मा से
चारो प्रार्थनारत है अपने टुकड़े के लिए
और प्रार्थना स्वीकार हो गई
टुकड़ा फिर चहकेगा चिड़िया बन कर
नाचेगा अपनी रौ में ,हसेगा जाड़े की धूप बन कर
और पूरा प्यार तथा जीवन डाल देगा चाय की प्याली में
फिर चहकेगी चारो दिशाए ,चारो भुजाये ,जमीन और आसमान .

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