शनिवार, 14 अगस्त 2010

वो सदमे में रहा होगा शायद

वो सदमे में ही  रहा होगा शायद
उसने कुछ नहीं कहा होगा शायद
कितना शोर और कितना धुआं था
उसने कुछ देखा सुना होगा शायद

लगी थी हाट सब कुछ बिक रहा था
कुछ छुपा और कुछ दिख रहा था 
वे सब आये थे जो सब खरीद लेते है
उनसे कुछ भी ना बचा होगा शायद

जो लोग जीत कर घरो को लौटे है
वहा तों  जश्न हो रहा होगा शायद  .
उधर वो जो ख़ाली उदास बैठा है 
वो मेले में लुट गया होगा शायद

है मेला या दंगा हमारा भ्रम तों नहीं
घर नहीं कही ठहर गया होगा शायद
इससे अच्छा तों अपना  पनघट था
ओ फिसलने से डर गया होगा शायद

समंदर तों हमेशा ही इतना गहरा था
किनारे पर धोखा हुआ होगा शायद|
सीख लिया समंदर की सवारी करना
कहा पहुंचोगे ना सोचा होगा शायद .

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